एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन 2024

#Boudh Dharm बौद्ध धर्म – बुद्ध धम्म

विविध संस्कृतियों एवं धार्मिक मान्यताओं के एक जीवंत केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध भारत लंबे समय से बौद्ध धर्म का गढ़ रहा है। यह प्राचीन परंपरा न केवल इसकी सीमाओं के भीतर विकसित हुई, बल्कि विभिन्न देशों में भी फैली। इस समृद्ध विरासत का उत्सव मनाने हेतु भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय, अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) के सहयोग से, 5-6 नवंबर, 2024 को नई दिल्ली में पहले एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन (एबीएस) का आयोजन कर रहा है। “एशिया को मजबूत करने में बुद्ध धम्म की भूमिका” विषय पर आयोजित इस शिखर सम्मेलन में पूरे महाद्वीप के बौद्ध संघों के सम्मानित नेतागण, बौद्ध धर्म के विद्वान व  मतावलंबी शामिल होंगे, जो बौद्ध समुदाय के सामने आने वाली समकालीन चुनौतियों का समाधान करते हुए संवाद और समझ को बढ़ावा देंगे। भारत की महामहिम राष्ट्रपति मुख्य अतिथि के रूप में इस शिखर सम्मेलन में भाग लेंगी।

पृष्ठभूमि

बुद्ध धम्म की यात्रा छठी शताब्दी ईसा पूर्व में शुरू हुई जब सिद्धार्थ गौतम ने ज्ञान प्राप्त किया और अपनी गहन अंतर्दृष्टि को साझा करना शुरू किया। बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद, उनकी शिक्षाओं को उनके अनुयायियों द्वारा संरक्षित व प्रसारित किया गया, जिससे तीन प्रमुख बौद्ध परंपराओं का उदय हुआ: थेरवाद, महायान और वज्रयान।

मौर्य सम्राट अशोक (268-232 ईसा पूर्व) ने बुद्ध धम्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और यह दिखाया कि कैसे इसकी शिक्षाएं शांति, खुशी और सद्भाव को बढ़ावा देकर समाज को बदल सकती हैं। उनका शासन धम्म के सिद्धांतों पर आधारित था और उनके शिलालेख एवं स्तंभ लेख एशिया भर में बौद्ध धर्म के व्यापक प्रसार के स्थायी प्रतीक के रूप में मौजूद हैं।

जैसे-जैसे बौद्ध धर्म विकसित हुआ, विभिन्न मठ-आधारित संप्रदाय उभरे। इसके परिणामस्वरूप पहली शताब्दी ईस्वी तक एक महत्वपूर्ण विभाजन हुआ, जिसके कारण महायान और निकाय बौद्ध धर्म का विकास हुआ, जिसमें थेरवाद एकमात्र जीवित निकाय है। बौद्ध धर्म का प्रभाव भारत के बाहर भी बढ़ा। स्थानीय संस्कृतियों को अपनाते हुए यह मध्य एशिया से होते हुए उत्तर से पूर्वी एशिया तक फैला और उत्तरी शाखा का निर्माण किया। यह पूर्व से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया तक फैला और दक्षिणी शाखा का निर्माण किया। बौद्ध शिक्षाओं की अनुकूलनशीलता और विविध व्याख्याओं के उद्भव ने इस धर्म को संपूर्ण इतिहास में विभिन्न संस्कृतियों की आध्यात्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ बनाया है।

प्रथम एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन 2024

एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन 2024 बुद्ध धम्म, भारत और एशिया के पूरक संबंधों को प्रदर्शित करते हुए उनके बीच के गहन अंतर्संबंधों पर जोर देता है। महामहिम राष्ट्रपति के मुख्य अतिथि के रूप में इस सम्मेलन में भाग लेने की उम्मीद है, जो इस कार्यक्रम के महत्व को रेखांकित करता है। यह शिखर सम्मेलन एशिया में सामूहिक, समावेशी और आध्यात्मिक विकास पर ध्यान केन्द्रित करते हुए, भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और ‘पड़ोसी पहले’ (नेबरहुड फर्स्ट) की नीति के अनुरूप है। इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, इस शिखर सम्मेलन में उन प्रमुख विषयों पर चर्चा की जायेगी, जो बौद्ध धर्म की समृद्ध विरासत और इस पूरे क्षेत्र में इसकी समकालीन प्रासंगिकता का उत्सव मनाते हैं:

  1. बौद्ध कला, वास्तुकला और विरासत

बौद्ध कला, वास्तुकला और विरासत का अत्यधिक महत्व है, जो इस परंपरा के भीतर के गहरे सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक संबंधों को दर्शाते हां। लाखों लोगों द्वारा अपनाई गई, बुद्ध की शिक्षाएं भारत की विरासत की समृद्ध पटल पर खूबसूरती से सन्निहित हैं, जिसमें सांची के स्तूप और अजंता की गुफाएं जैसे स्थल गहन शिक्षाओं को व्यक्त करते हुए उत्कृष्ट शिल्प कौशल का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। बौद्ध कला एवं वास्तुकला को संरक्षित करके और उनका उत्सव मनाकर, हम विविध समुदायों के बीच अंतर-सांस्कृतिक समझ एवं सराहना में वृद्धि कर सकते हैं।

  1. बुद्ध कारिका और बुद्ध धम्म का प्रसार

बुद्ध कारिका या बुद्ध की उत्कृष्ट यात्राओं ने बुद्ध धम्म के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ज्ञान प्राप्त करने के बाद, बुद्ध ने आम लोगों के बीच अपनी शिक्षाओं का प्रसार करते हुए देशभर की यात्रा की।

  1. पवित्र बौद्ध अवशेषों की भूमिका और समाज में इसकी प्रासंगिकता

बौद्ध अवशेष समाज में महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे बुद्ध की शिक्षाओं के पवित्र प्रतीक के रूप में कार्य करते हैं, मतावलंबियों के बीच भक्ति एवं जागरूकता को प्रेरित करते हैं। वे सांस्कृतिक विरासत एवं परंपराओं को संरक्षित करते हैं और विविध अनुष्ठानों एवं सामुदायिक समारोहों के लिए केन्द्रबिंदु के रूप में कार्य करते हैं। तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों को आकर्षित करके, वे समुदायों के भीतर शांति और करुणा के सिद्धांतों को प्रोत्साहित करते हुए स्थानीय अर्थव्यवस्था में भी योगदान देते हैं।

  1. वैज्ञानिक अनुसंधान और कल्याण में बुद्ध धम्म का महत्व

वैज्ञानिक अनुसंधान और कल्याण में बुद्ध धम्म का महत्व जागरूकता, करुणा और सभी प्राणियों के परस्पर जुड़ाव पर जोर देने में निहित है। इन प्राचीन शिक्षाओं को समकालीन विज्ञान के साथ एकीकृत करके, शोधकर्ता कल्याण के ऐसे समग्र दृष्टिकोण की खोज कर रहे हैं जो मनोवैज्ञानिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए।

  1. 21वीं सदी में बौद्ध साहित्य एवं दर्शन की भूमिका

बौद्ध साहित्य एवं दर्शन एक ऐसा समृद्ध व जटिल परिदृश्य तैयार करते हैं, जो मानवीय स्थिति, वास्तविकता के स्वरूप और आत्मज्ञान के मार्ग पर प्रकाश डालता है। इन ग्रंथों में व्यक्त बुद्ध के ज्ञान ने सदियों से मन को मोहित किया है। इन लेखों के माध्यम से, बौद्ध धर्म का दर्शन अंतर्दृष्टि तथा समझ हासिल करने का एक कालातीत स्रोत बना हुआ है।

इन महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा के अलावा, इस शिखर सम्मेलन के दौरान आयोजन स्थल पर अन्य रचनात्मक प्रदर्शों के साथ-साथ “एशिया को जोड़ने वाले धम्म सेतु के रूप में भारत” शीर्षक एक विशेष प्रदर्शनी भी आयोजित की जाएगी। यह आयोजन बुद्ध के धम्म से संबंधित संपूर्ण एशिया के विविध दृष्टिकोणों को एकजुट करने का एक अनूठा अवसर प्रस्तुत करेगा। समसामयिक चुनौतियों का समाधान करने और बौद्ध विरासत को बढ़ावा देने वाले संवाद के माध्यम से, इस शिखर सम्मेलन का उद्देश्य मानवता के समग्र कल्याण में योगदान करते हुए अधिक दयालु, टिकाऊ और शांतिपूर्ण दुनिया को बढ़ावा देना है।

भारत द्वारा अपनी बौद्ध संस्कृति एवं विरासत का उत्सव

बुद्ध की शिक्षाओं तथा  उनके शिष्यों एवं अनुयायियों द्वारा प्रचारित ज्ञान ने जीवन, देवत्व और सामाजिक मूल्यों पर एक साझा दृष्टिकोण विकसित करके पूरे एशिया में एकता को बढ़ावा दिया है। बुद्ध धम्म भारत की सांस्कृतिक पहचान का एक अभिन्न अंग बन गया है, जो देश की ठोस विदेश नीति और प्रभावी राजनयिक संबंधों में योगदान दे रहा है। यह साझा विरासत आधुनिक युग में विभिन्न राष्ट्रों के बीच आपसी समझ, सम्मान और सहयोग को बढ़ाती है। इसी के अनुरूप, भारत ने इस समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने और उसे संरक्षित करने के उद्देश्य से विभिन्न पहल की हैं:

  1. भारत में बौद्ध पर्यटन सर्किट

 

बौद्ध सर्किट, पर्यटन मंत्रालय की स्वदेश दर्शन की थीम-आधारित विभिन्न पर्यटन सर्किटों के एकीकृत विकास योजना के तहत विकास के लिए पहचाने गए पंद्रह विषयगत सर्किटों में से एक है। बौद्ध सर्किट में कपिलवस्तु सहित बौद्ध धर्म से संबंधित देश के सभी स्थल शामिल हैं।

  1. प्रथम वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन

20 अप्रैल, 2023 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा उद्घाटन किया गया दो-दिवसीय वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन 2023 सार्वभौमिक मूल्यों के प्रसार और आंतरिककरण के तरीकों की खोज पर केन्द्रित था। इस शिखर सम्मेलन में प्रमुख वैश्विक चुनौतियों पर गौर किया गया और भविष्य के लिए टिकाऊ मॉडल प्रस्तुत किए गए। प्रतिभागियों ने सामूहिक रूप से व्यक्तिगत व वैश्विक स्तर पर शांति एवं सद्भाव की तत्काल आवश्यकता को पहचाना और अंतरधार्मिक संवाद को बढ़ावा देने, सद्भाव को प्रोत्साहित करने और सार्वभौमिक शांति प्राप्त करने हेतु आवश्यक मार्गदर्शक के रूप में बुद्ध धम्म की शिक्षाओं की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।

  1. साझा बौद्ध विरासत पर पहला अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन

17 सितंबर, 2022 से लेकर सितंबर 2023 के दौरान, भारत ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के अपने वर्ष भर के नेतृत्व में एक अनूठा कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें “साझा बौद्ध विरासत” पर चर्चा करने हेतु मध्य एशियाई, पूर्वी एशियाई, दक्षिण एशियाई और अरब देशों को एक साथ लाया गया। इस सम्मेलन का उद्देश्य सीमाओं से परे सांस्कृतिक संबंधों को फिर से स्थापित करना और एससीओ के सदस्य देशों के बीच बौद्ध कला, पुरातात्विक स्थलों तथा संग्रहालय के संग्रहों में समानताएं तलाशना, उनकी साझा विरासत के सहयोग और समझ को बढ़ावा देना है।

  1. कल्याण एवं वैश्विक शांति हेतु विपश्यना ध्यान के महत्व पर एक-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी

27 फरवरी, 2024 को अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) ने संस्कृति मंत्रालय, बैंकॉक स्थित भारतीय दूतावास और सिल्पाकोर्न विश्वविद्यालय के साथ मिलकर सिल्पाकोर्न विश्वविद्यालय में कल्याण एवं वैश्विक शांति हेतु विपश्यना ध्यान के महत्व पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में भिक्षुओं, शिक्षाविदों और विपश्यना का अभ्यास करने वाले लोगों ने सक्रिय रूप से चर्चा और प्रश्नोत्तर सत्र में भाग लिया। चर्चा किए जाने वाले विषयों में योग एवं विपश्यना के बीच अंतर, आध्यात्मिकता के साथ संबंध और आस्था की समझ, व्यक्तिगत कल्याण एवं वैश्विक सद्भाव हेतु ध्यान के महत्व पर प्रकाश डालना शामिल था।

  1. पाली भाषा को शास्त्रीय दर्जा

4 अक्टूबर, 2024 को पाली को आधिकारिक तौर पर शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया। यह एक ऐसी मान्यता है, जो इस क्षेत्र की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत में इसके ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करती है। भगवान बुद्ध ने अपने उपदेश देने के लिए पाली का उपयोग किया और इसे अपनी शिक्षाओं को व्यक्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में स्थापित किया। यह दर्जा बौद्ध धर्म की समृद्ध परंपराओं और बुद्ध धम्म की शिक्षाओं को संरक्षित करने में पाली के महत्व की पुष्टि करता है।

  1. अंतरराष्ट्रीय अभिधम्म दिवस

17 अक्टूबर, 2024 को, नई दिल्ली के विज्ञान भवन में अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के सहयोग से संस्कृति मंत्रालय द्वारा अंतरराष्ट्रीय अभिधम्म दिवस का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में विभिन्न देशों के राजदूतों, भिक्षुओं और विद्वानों सहित लगभग 1,000 प्रतिभागियों ने भाग लिया। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सभा को संबोधित करते हुए अभिधम्म की शिक्षाओं की स्थायी प्रासंगिकता पर जोर दिया और बुद्ध धम्म के संरक्षण में पाली की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला।

इस प्रकार, उपरोक्त गतिविधियों की निरंतरता में एबीएस पूरे एशिया में बुद्ध धम्म से संबंधित विविध विचारों को एक साथ लाने का एक अनूठा अवसर प्रस्तुत करता है।

निष्कर्ष

बौद्ध धर्म के प्रसार ने करुणा, जागरूकता एवं परस्पर जुड़ाव के मूल्यों को बढ़ावा देते हुए पूरे एशिया और उसके बाहर विभिन्न संस्कृतियों एवं समाजों को गहराई से आकार दिया है। बौद्ध धर्म के जन्मस्थान के रूप में, भरात इस समृद्ध विरासत का उत्सव मनाने और उसे बढ़ावा देने वाली नीतियों के साथ सक्रिय रूप से आगे बढ़ रहा है। एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन की मेजबानी करके भारत न केवल बुद्ध धम्म के सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि कर रहा है, बल्कि समकालीन समाज में बौद्ध धर्म के विकास एवं प्रासंगिकता को बढ़ावा देने की प्रक्रिया में खुद को एक अगुआ के रूप में स्थापित कर रहा है और यह सुनिश्चित कर रहा है कि बौद्ध धर्म की शिक्षाएं भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहें।

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