SERB और GE इंडिया ने उन्नत प्रौद्योगिकी अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए साझेदारी का ऐलान किया

जल्द ही देश भर के शैक्षणिक संस्थान, प्रयोगशालाएं और उद्योग एक साथ मिलकर ऊर्जा, स्वास्थ्य सेवाएं और विमानन क्षेत्रों में इन्नोवेशन पर काम करने के लिए पूंजी के लिए आवेदन कर सकेंगे।

यह सुविधा भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के वैधानिक निकाय विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) और जीई के बंगलुरू स्थित जॉन एफ वेल्च टेक्नोलॉजी सेंटर (जेएफडब्ल्यूटीसी)  के बीच संयुक्त साझेदारी के जरिए मिलेगी। जिसे 23 जनवरी 2021 को लांच किया गया है। इस साझेदारी के जरिए ऊर्जा, स्वास्थ्य और विमानन क्षेत्रों की प्रौद्योगिकी में अनुसंधान और विकास के लिए शैक्षणिक संस्थानों, प्रयोगशालाओं और उद्योगों के बीच तालमेल को बढ़ावा मिलेगा।

डीएसटी के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा “विज्ञान, प्रौद्योगिकी और इन्नोवेशन नीति 2021” के मसौदे में अनुसंधान और इन्नोवेशन क्षेत्र में चुनौतियों का समाधान करने के लिए उद्योग जगत के साथ विस्तारपूर्वक सहयोग करना हमारे उद्देश्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।”

“हम जीई के साथ साझेदारी कर एक ऐसा इको सिस्टम विकसित करने के लिए उत्सुक हैं, जो राष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान कार्य में विकास को बढ़ावा देगा। मुझे यकीन है कि जीई के साथ सह-वित्तपोषण व्यवस्था कुछ बेहतरीन विचारों को सामने लाएगी। यह कोष देश में इन्नोवेशन की नई मानसिकता विकसित करने के लिए आवश्यक प्रोत्साहन देने की दिशा में एक सही कदम है।”

एसईआरबी के सचिव प्रोफेसर संदीप वर्मा ने बताया कि यह साझेदारी विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भविष्य की चुनौतियों से निपटने की दिशा में सक्रिय रूप से योगदान दे सकती है। “यह प्रमुख प्रौद्योगिकियों के रोडमैप पेश करने में भारत की एक प्रभावी भूमिका बनाने में सहयोग कर सकती है। उन्हें जोर देकर कहा कि हमें विश्वास है कि यह देश और उद्योग जगत के प्रख्यात वैज्ञानिकों के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में सक्रिय रूप से योगदान करने के लिए कई दरवाजे खोलेगी।”

जीई दक्षिण एशिया के मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी और जीई इंडिया टेक्नोलॉजी सेंटर के सीईओ आलोक नंदा ने कहा कि यह कार्यक्रम टिकाऊ संसार बनाने और उसके लिए समाधान खोजने के बारे में है। “एसईआरबी के साथ हमारी साझेदारी भारत में अनुसंधान और इन्नोवेशन क्षमताओं को मजबूत करने के लिए हमारी निरंतर और दीर्घकालिक प्रतिबद्धता का एक हिस्सा है। शिक्षाविद इसमें एक बड़ी भूमिका निभाएंगे, और हम इस संभावना को देखने के लिए उत्साहित हैं कि कैसे कुछ बेहतरीन विचार हमारे देश की सबसे कठिन चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं।

सरकार जल्द ही अकादमिक और अनुसंधान प्रयोगशालाओं से सुदूर निगरानी प्रौद्योगिकी, ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, स्वास्थ्य सेवाओं के लिए चिकित्सा उपकरण, आधुनिक मेटेरियल्स और कोटिंग्स, डीकार्बोनाइजेशन, गैसीय ऊर्जा के लिए नवीकरणीय ऊर्जा और ऑप्टीमाइजेशन के लिए सिमुलेशन और एडवांस्ड रिपेयर सॉल्यूशंस में अनुसंधान के लिए प्रस्ताव मांगेगी।

फंड फॉर इंडस्ट्रियल रिसर्च एंगेजमेंट (एसईआरबी-एफआईआरई) के हिस्से के रूप में शुरू किए गए इस कार्यक्रम का उद्देश्य इन प्रमुख उद्योगों में महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और वैश्विक चुनौतियों को हल करने के लिए अनुसंधान और तकनीकी विकास का समर्थन करना है। इस सहयोग से देश में एक प्रभावशाली अनुसंधान इकोसिस्टम को बढ़ावा देने के लिए एक परिवर्तनकारी अनुसंधान सोच विकसित करने और उसके लिए लोगों को प्रेरित करने में मदद मिलेगी।

      जीई और एसईआरबी की साझेदारी का उद्देश्य मुख्य रूप से इन्नवोशन को बढ़ावा देना और उन क्षेत्रों की खास चुनौतियों का समाधान करना है जो उद्योगों के लिए सीधे प्रासंगिक हैं। उद्योगों और अकादमियों की साझेदारी का उद्देश्य उद्योगों की जरूरत के आधार पर कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना हैं।  जिससे रोजगार, अनुसंधान और संयुक्त उत्पादों का विकास हो सके।

उद्योग प्रासंगिक आर एंड डी (आईआरआरडी) योजना के तहत “फंड फॉर इंडस्ट्रियल रिसर्च एंगेजमेंट (एफआईआरई)” का उद्देश्य उद्योग जगत के समर्थन से, एक इकोसिस्टम बनाकर भारत में अनुसंधान और इन्नोवेशन के क्षेत्र में चुनौतियों का समाधान करना है। इसके तहत एफआईआरई राष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान के विकास को गति प्रदान करेगा और आरएंडडी क्षेत्र को कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से चलाएगा। इसके लिए वित्त पोषण, संसाधनों और नेटवर्क का एक पूल तैयार करेगा जो कि मजबूत अनुसंधान प्रोजेक्ट को बढ़ावा देगा। जिसके जरिए भारतीय उद्योग जगत की प्रमुख मौजूदा चुनौतियों का प्रभावी समाधान मिलेगा।

      एसईआरबी की उद्योग प्रासंगिक आर एंड डी (आईआरआरजी) योजना का उद्देश्य समाज के बड़े लाभ के लिए उद्योगों की प्रमुख समस्याओं को हल करने के लिए शैक्षणिक संस्थानों और राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में उपलब्ध विशेषज्ञता का इस्तेमाल करना है।

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