भारत सरकार ने थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, मिल मालिकों और आयातकों के लिए दालों की स्टॉक-सीमा लागू करते हुए एक ऐतिहासिक आदेश जारी किया है

दालों जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित करने की अपनी निरंतर कोशिशों में भारत सरकार ने एक ऐतिहासिक आदेश जारी किया है, जिसमें उसने थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, मिल मालिकों और आयातकों द्वारा दालों के भंडारण पर सीमा तय की है। आज यानी 2 जुलाई 2021 से, तत्काल प्रभाव से निर्दिष्ट खाद्य पदार्थ (संशोधन) आदेश, 2021 पर लाइसेंसिंग आवश्यकताओं, स्टॉक सीमा और आवाजाही प्रतिबंधों को हटाना जारी किया गया है।

इस आदेश के तहत सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए मूंग को छोड़कर सभी दालों के लिए 31 अक्टूबर 2021 तक स्टॉक सीमा निर्धारित की गई है। थोक विक्रेताओं के लिए ये स्टॉक सीमा 200 मीट्रिक टन (बशर्ते एक किस्म की दाल 100 मीट्रिक टन से ज्यादा नहीं होनी चाहिए), खुदरा विक्रेताओं के लिए 5 मीट्रिक टन और मिल मालिकों के लिए ये सीमा उत्पादन के अंतिम 3 महीनों या वार्षिक स्थापित क्षमता का 25 प्रतिशत, जो भी ज्यादा हो, वो होगी। आयातकों के लिए ये स्टॉक सीमा 15 मई 2021 से पहले रखे गए/आयात किए गए स्टॉक के लिए किसी थोक व्यापारी के समान ही होगी और 15 मई 2021 के बाद आयात किए गए स्टॉक के लिए थोक विक्रेताओं पर लागू स्टॉक सीमा, सीमा शुल्क निकासी की तारीख से 45 दिनों के बाद लागू होगी। ये भी कहा गया है कि अगर संस्थाओं का स्टॉक निर्धारित सीमा से अधिक है, तो उन्हें उपभोक्ता मामलों के विभाग के ऑनलाइन पोर्टल (fcainfoweb.nic.in) पर उसकी जानकारी देनी होगी और इस आदेश की अधिसूचना जारी होने के 30 दिनों के अंदर निर्धारित सीमा के भीतर लाना होगा।

भारत सरकार द्वारा लगातार किए गए प्रयासों की एक श्रृंखला के परिणामस्वरूप, दालों और खाद्य तेलों के मूल्यों में गिरावट का रुख देखा जा रहा है। इसके अतिरिक्त, पिछले 6 वर्षों में, प्रमुख दालों का कुल उत्पादन अब तक का सबसे अधिक 255.8 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) 2020-21 में हुआ, जिसमें चना (126.1 एलएमटी) और मूंग दाल (26.4 एलएमटी) ने विशेष रूप से उत्पादन के अपने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। चूंकि पूरा देश कोविड महामारी के प्रभाव से जूझ रहा है, और ऐसे में सरकार समय पर उचित उपाय अपनाने के लिए प्रतिबद्ध है और आम आदमी की चिंताओं व पीड़ा को काफी हद तक कम कर दिया है। इस सुधार से समाज के सभी वर्गों द्वारा व्यापक राहत महसूस की गई है।

‘आत्मनिर्भर भारत’ के लिए अपने दृष्टिकोण को आगे बढ़ाते हुए, भारत सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक बहु-आयामी रणनीति तैयार की है कि दालों जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें नियंत्रित रहें। मूल्य निगरानी योजना के एक हिस्से के रूप में, जिसके तहत केंद्र सरकार मूल्य निगरानी केंद्र स्थापित करने में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों की सहायता करती है, ऐसे मूल्य निगरानी केंद्र की संख्या में 50 प्रतिशत की वृद्धि (2014 में 57 केंद्र से 2020 में 114 केंद्र) हुई है। दरअसल, वर्ष 2021 के पहले तीन महीनों के भीतर ही, 22 और केंद्र जोड़े गए हैं। यह कदम सुनिश्चित करेगा कि देश भर से प्राप्त मूल्यों से संबंधित आंकड़े और अधिक प्रतिनिधिक हो।

बड़े पैमाने पर डिजिटलीकरण प्रयास के एक हिस्से के रूप में, मूल्य डेटा की गुणवत्ता में सुधार की प्रतिबद्धता के साथ, सरकार द्वारा 1 जनवरी 2021 को मूल्य निगरानी केंद्रों से दैनिक आधार पर मूल्यों से संबंधित आंकड़ों को दर्ज करने के लिए एक मोबाइल ऐप लॉन्च किया गया था। वास्तविक बाजार स्थान और मूल्य प्रवृत्तियों व अनुमानों का विश्लेषण प्राप्त करने के लिए एक डैशबोर्ड विकसित किया गया है। साथ ही, जमीनी स्तर पर स्थिति का आकलन करने के लिए एक विपणन एजेंसी की सेवाओं का उपयोग किया जा रहा है।

दालों के खुदरों मूल्यों में कमी लाने के उद्देश्य से बफर स्टॉक से दालों को बाजार में जारी करने के कदम के तत्कालिक प्रभाव में वृद्धि करने के लिए 2020-21 में खुदरा मूल्यों से संबंधित एक व्यवस्था शुरू की गई थी। राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को मूंग, उड़द और तुअर दाल की आपूर्ति खुदरा दुकानों जैसे कि एफपीएस, उपभोक्ता सहकारी समिति आउटलेट आदि के माध्यम से की गई थी। नेफेड के दाल बनाने/प्रसंस्करण, परिवहन, पैकेजिंग और सेवा शुल्क से संबंधित लागत विभाग द्वारा ही वहन की गई थी। इसके अतिरिक्त, अक्टूबर, 2020 और जनवरी, 2021 के दौरान, कीमतों को नियंत्रित करने के लिए 2 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) तुअर दाल खुले बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध कराई गई थी। इसके अलावा, कल्याण और पोषण कार्यक्रमों के लिए दालों की आपूर्ति के रूप में तुअर की दाल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर और चने की दाल की आपूर्ति एमएसपी पर 5 प्रतिशत की छूट पर की गई थी।

हाल ही में, इस सिद्धांत से निर्देशित होकर कि भरपूर उत्पादन के दौरान किसानों से बढ़ी हुई खरीद के जरिए अनाजों का बफर बनाया जाना चाहिए और अस्थिरता की अवधि के दौरान परिस्थितियों को सामान्य रखने के लिए उन अनाजों को जारी किया जाना चाहिए, मूल्यों के  स्थिरीकरण के उद्देश्य से बढ़ी हुई खरीद और बढ़े हुए बफर स्टॉक लक्ष्यों के रूप में कारगर उपाय किए गए। मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) के तहत वित्तीय वर्ष 2021-22 में दालों के बफर का लक्षित आकार बनाए रखने के लिए इसे बढ़ाकर 23 लाख मीट्रिक टन और चने के बफर को बढ़ाकर 10 लाख मीट्रिक टन कर दिया गया है। साथ ही, पीएसएफ के तहत, मध्य प्रदेश में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर एक लाख मीट्रिक टन ग्रीष्मकालीन मूंग की खरीद की जा रही है क्योंकि राज्य द्वारा मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत खरीद के लिए प्रस्तावित मात्रा इसके लिए अनुमोदित मात्रा से अधिक है। इस कदम से किसानों की आय में वृद्धि होगी क्योंकि उन्हें अपनी उपज के लिए लाभकारी मूल्य प्राप्त होंगे और यह सुनिश्चित होगा कि वे अगले सीजन के दौरान इस फसल के लिए अपने खेती के क्षेत्र में कमी न करें।

मार्च-अप्रैल माह में दालों के दामों में लगातार बढ़ोतरी हुई थी। बाजार को सही संदेश देने के लिए तत्काल नीतिगत निर्णय लेने की जरूरत महसूस की गई। जमाखोरी की अवांछनीय प्रथा, जिसकी वजह से बनावटी कमी की परिस्थिति पैदा होती है और मूल्यों में वृद्धि होती है, पर रोक लगाने के लिए पूरे देश में दालों के वास्तविक स्टॉक की घोषणा करने की पहली बार एक प्रक्रिया अपनाई गई। दालों की कीमतों की बारीक निगरानी और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए, सरकार द्वारा विभिन्न हितधारकों द्वारा रखे गए स्टॉक की घोषणा करने के लिए एक वेब पोर्टल विकसित किया गया है। 14 मई 2021 को सरकार द्वारा राज्यों/केन्द्र-शासित प्रदेशों से आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (ईसी एक्ट, 1955) के तहत मिल मालिकों, आयातकों, विक्रेताओं और स्टॉकिस्टों से अपने दाल के स्टॉक को पंजीकृत व घोषित करने का अनुरोध किया गया। इस कदम को सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है क्योंकि अब तक 7001 पंजीकरण हो चुके हैं और 28.31 लाख मीट्रिक टन के स्टॉक घोषित किए गए हैं।

साथ ही साथ, घरेलू उपलब्धता बढ़ाने और दालों के आयात के प्रवाह को बाधारहित बनाने के लिए, 15 मई 2021 से 31 अक्टूबर 2021 तक की अवधि के लिए तुअर, उड़द और मूंग को प्रतिबंधित श्रेणी से मुक्त श्रेणी में स्थानांतरित करते हुए आयात नीति में बदलाव किए गए हैं। इसके अलावा, सालाना 2.5 एलएमटी उड़द और 1 एलएमटी तुअर का आयात करने के लिए म्यांमार और सालाना एक एलएमटी तुअर का आयात करने के लिए मलावी के साथ पांच वर्ष के लिए एमओयू किया गया है, और सालाना दो एलएमटी तुअर का आयात करने के लिए मोजाम्बिक के साथ एमओयू को अगले पांच वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया है। यह एमओयू विदेशों में उत्पादित और भारत को निर्यात की जाने वाली दालों की मात्रा का पूर्वानुमान सुनिश्चित करेंगे, इस प्रकार भारत और दाल निर्यातक देश दोनों को ही लाभ होगा।

इसके अतिरिक्त, खाद्य तेलों की कीमतों में नरमी लाने के लिए, बंदरगाहों पर कच्चे पाम तेल (सीपीओ) जैसी खाद्य वस्तुओं की त्वरित निकासी की निगरानी करने के लिए एक प्रणाली को संस्थागत रूप दिया गया है, जिसमें सीमा शुल्क विभाग, एफएसएसएआई और प्लांट क्वारंटाइन डिवीजन के नोडल कार्यालय शामिल हैं। इसके अलावा, उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए, 30 जून 2021 से 30 सितंबर 2021 तक सीपीओ पर लगने वाले शुल्क में 5% कटौती की गई है। निश्चित रूप से, यह कटौती सिर्फ सितंबर तक ही मान्य है, क्योंकि सरकार अपने किसानों के हितों की रक्षा के लिए भी प्रतिबद्ध है। यह कटौती सीपीओ पर पहले के लागू 35.75 प्रतिशत कर की दर को घटाकर 30.25 प्रतिशत तक ले आएगी, और बदले में, खाद्य तेलों की खुदरा कीमतों में गिरावट आ जाएगी। इसके साथ, रिफाइंड पाम ऑयल/पामोलिन पर शुल्क को 45% से घटाकर 37.5% कर दिया गया है।

रिफाइंड ब्लीच्ड डियोडोराइज्ड (आरबीडी) पाम ऑयल और आरबीडी पामोलिन के लिए एक संशोधित आयात नीति 30 जून 2021 से लागू की गई है, जिसके तहत उन्हें प्रतिबंधित श्रेणी से हटाकर मुक्त श्रेणी में शामिल किया गया है। बंदरगाहों पर सुव्यवस्थित व सुचारु प्रक्रियाओं का समर्थन करने के लिए, विशेष रूप से कोविड-19 के चलते विलंबित अनुमति में तेजी लाने के लिए दालों और खाद्य तेलों के आयात की खेपों की तेजी से निकासी के लिए मानक संचालन प्रक्रिया तैयार की गई है। खेपों की निकासी के लिए औसत रुकने का समय दालों के मामले में 10 से 11 दिन से घटकर 6.9 दिन और खाद्य तेलों के मामले में यह 3.4 दिन हो गया है।

कोविड-19 महामारी की वजह से आपूर्ति श्रृंखला के बाधित होने और अन्य आर्थिक परिणामों के बावजूद, सरकार ने देशभर में अपने सभी नागरिकों के लिए आवश्यक वस्तुओं की आसान पहुंच व निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कदम उठाए हैं। सरकार अपने लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए मिशन-मोड में काम करना जारी रखेगी और न केवल अपनी घरेलू क्षमता के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करके बल्कि विदेशी व्यापार के साथ राष्ट्रीय तिलहन मिशन की तरह अपनी नीतियों को जोड़कर ‘आत्मनिर्भर भारत’ के अपने दृष्टिकोण को आगे बढ़ाएगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *